मंगलवार, 31 मार्च 2009
रविवार, 29 मार्च 2009
अपमान की क्लांति से बचना - Open Source तकनीक
ज्ञान जी अक्सर आत्मविकास के लिये, अलग अलग गुणों के विकास के लिये पशुओं से प्रेरणा लेते ही है, जैसे खच्चर से कर्म, बगुले से ध्यान, ऊंट से कोई अन्य गुण आदि। इसी प्रकार अपमान व ईगो-हर्ट से निजात पाने के लिये हमने विद्युतीय अभियंत्रण से प्रेरणा ले ली - यह जुगाड़ अक्सर कारगर साबित होता है, कभी हम ही दोषी होते हैं।
आकाशीय तड़ित् व बिजली का झटका
आकाशीय बिजली (तड़ित) यदि कहीं गिरती है तो काफ़ी नुकसान करती है। उसका विद्युतीय आवेश बहुत कुछ तहस नहस करता है। इसी प्रकार विद्युतीय चालक (live electric body or conductor) के सम्पर्क से हमें इसका करारा झटका लगता है।
हम आकाशी बिजली अथवा इलेक्ट्रिक शॉक से बचने के लिये इस विद्युत को सुगम मार्ग प्रदान करते हैं। उच्च भवनों में एक विद्युतीय चालक के द्वारा इसे भूमि से जोड़ देते हैं, व ऐसे ही घरों की वायरिंग में अर्थ (Electrical Earth) का इंतज़ाम करते हैं, ऐसे तार से जो कि भूमि से भली भांति जुड़ा हो।
भूमि को विद्युत आवेश का सिंक ( अवशोषक) भी मानते हैं। किसी प्रकार के हानिकारक आवेश को भूमि के अन्दर समाने का सुगम मार्ग बना कर हम इससे बच जाते हैं। तड़ित्-चालक अथवा इलेक्ट्रिक अर्थ के माध्यम से हानिकारक विद्युतीय आवेश हानिकारक ऊर्जावान होते हुए भी सुगम मार्ग से होता हुआ धरा में अवशोषित हो जाता है और हानि नहीँ पहुंचाता।
अपमान को अर्थ (Earth) करने की व्यवस्था
हमने भी इसी तकनीक को अपमान, ठेस आदि से बचने का तरीका माना है (बहुधा कामयाब रहता है) - बस मानसिक कण्डक्टर से अपमान को अर्थ (earth) कर देंते हैं, अपने पास आने नहीं देते। धरणी ऐसे अपमान का आवेश आसानी से अवशोषित कर लेती है और हम बच जाते हैं उसके हानिकारक प्रभाव से !
यह मुक्त स्रोत (Open Source) तकनीक शायद दंभ, क्रोध आदि में भी कारगर हो - पर बहुत अभ्यास और निपुणता लगेगी, हमें तो अभी। अभी ठीक से क्रोध करने की क्षमता तो अर्जित करें - मौज इसको विकसित जो नहीं होने देती!
इसी क्रम में एक और तकनीक और भी आगे सहेजने का प्रयास होगा।
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 4:47 am 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अपमान, anger, open source
सोमवार, 23 मार्च 2009
बाबा को लिखते देखा है,
आज बाबा नागार्जुन के संस्मरण से सम्बन्धित एक पोस्ट पढ़ी बाबा नागार्जुन को मैंने लिखते हुए भी देखा है, जिसमें कि शास्त्री जी ने बाबा नागार्जुन के सान्निध्य में बिताये कुछ दिनों का वर्णन किया है। शास्त्री जी ने बाबा नागार्जुन के बारे में अन्य सचित्र आलेख भी लिखे हैं। शास्त्री जी लिखते हैं
रात में जब मेरी आँख खुली तो मैंने सोचा कि एक बार बाबा को देख आऊँ। मैं जब उनको देखने गया तो बाबा ट्यूब लाइट जला कर एक हाथ में मैंग्नेफाइंग ग्लास ग्लास लिए हुए थे और कुछ लिख रहे थे। मैंने बाबा को डिस्टर्ब करना उचित नही समझा और उल्टे पाँव लौट आया।बाबा नागार्जुन की एक कविता (कदाचित सर्वाधिक लोकप्रिय भी), "बादल को घिरते देखा है..." मेरी सर्वाधिक प्रिय कविताओं में सर्वोपरि है, इस का स्वीकरण मैंने अन्यत्र भी कर चुका हूँ, अंतर्जाल पर भी यह सुन्दर कविता उपलब्ध है ही। मैं उनकी कविता का साहित्यिक स्तर आँकने के योग्य तो नहीँ हूँ, पर इतना अवश्य है कि इस कविता की हर एक पंक्ति और हर एक शब्द विशेष रूप से चयनित है और सम्पूर्ण है।रात में जब 1-2 बजे मेरी आँख खुलती थी तो बाबा के एक हाथ में मैग्नेफाइंग-ग्लास होता था और दूसरे हाथ में पेन।
मैंने बाबा को 76 साल की उम्र में भी रात में कुछ लिखते हुए ही पाया था।
यह एक विस्मयकारी संयोग था कि उनके संस्मरण पढ़कर और उस पर उनकी पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर मुझे उनकी कविता और पोस्ट के शीर्षक में कुछ ध्वन्यात्मक साम्य लगा और कुछ पंक्तियाँ सहज ही बन गयीँ, उन पंक्तियों को फिर संपादित कर यहाँ लिख दिया है ताकि कि ये विस्मृत न हो जायें। साथ ही उनकी कविताओं की कुछ कड़ियाँ भी सन्दर्भ के लिये। मैं किसी भी स्तर का कोई कवि या रचनाकार होने का भ्रम नहीँ पाल रहा हूँ, मात्र सहेजने के प्रयास से इन्हें यहाँ लिख दिया है। कदाचित कभी संशोधित भी कर दी जाय।
बादल को घिरते देखा है !
बाबा को लिखते देखा है...
जीवन पथ के उस पड़ाव पर,
दृष्टि क्षीण थी पर नहीँ पराजित।
निशाकाल के शांत प्रहर में,
नभ में था विस्तार तिमिर का,
पर आलोकित कृत्रिम प्रकाश से
अंतर्कक्ष की मद्धिम ज्योति में
उस एकाकी कवि के द्वारा
साहित्य सृजन होते देखा है।
जब शयन रत थे प्राणिमात्र सब,
निस्तब्ध शांति के ऐसे क्षण में,
वीणापाणि के वरद पुत्र को
मनोयोग से चिंतन करते,
लेखन - मनन करते देखा है।
बाबा को लिखते देखा है...
सन्दर्भ हेतु बाबा नागार्जुन की उपरिवर्णित कविता की कुछ कड़ियाँ
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 11:21 pm 7 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 6 मार्च 2009
महात्मा गाँधी की निजी वस्तुओँ का मोल देश के प्रमुख मदिरा व्यवसायी ने चुकाया
कितनी विडम्बना की बात है यह कि जिस व्यक्ति को देश व सम्पूर्ण विश्व सत्य, शांति और अहिंसा के पुजारी के रूप में जानता है, जिन्हें हम भारतवासी राष्ट्रपिता का सम्बोधन देते हैं, उन्हीँ की निजी वस्तुओं की सार्वजनिक नीलामी, विश्व के भौतिक रूप से सम्पन्न राष्ट्र सं. रा. अमेरिका के व्यवसायी द्वारा धन, व शायद लोकप्रियता प्राप्त करने के लोभ के वशीभूत हो कर दी गयी।
समाचार के अनुसार, न केवल यह बल्कि उसने तो इन वस्तुओं को भारत को वापस करने का प्रस्ताव स-शर्त रखा - यदि भारत अपनी रक्षा-नीतियों (रक्षा-खर्च) में कटौती करे (व उन्हें स्वास्थय सेवाओं में लगाये) परंतु यह भी शायद अभिनय ही था। वह भी रखा या नहीँ, यह तो आने वाले समाचारों से विस्तार से मालूम हो जायेगा।
शायद अधिकृत रूप से इसे रोकने में वह सरकार असमर्थ थी, अथवा नहीँ, यह तो कानून-विज्ञ जानें परंतु मेरी दृष्टि में यह घटना वहाँ के समाज / सरकार / व्यवसायिकता की निम्न स्तरीय मानसिकता को दर्शाती है। यही देश विश्व में लोकमत, न्याय व शांति प्रसार का ढिढोरा पीटता दिखायी देता है
क्या इसे वह सरकार अथवा व्यवसायी वास्तव में चाहते तो क्या उनके द्वारा इसे रोका जाना चाहिये था? क्या दूसरे राष्ट्र के व्यक्ति को ऐसे परिप्रेक्ष्य में भारत को अपनी नीति निर्धारण के निर्देश देने का प्रयास उचित है?
और यह भी विडम्बना ही है कि उसी राष्ट्रपिता, जिनके जन्म-दिन पर श्रद्धा के प्रतीकस्वरूप पूरे देश में मदिरा की सार्वजनिक बिक्री पर प्रतिबन्ध है, उनकी निजी वस्तुओं को सार्वजनिक नीलामी में उसी मदिरा के प्रमुख भारतीय व्यवसायी, विजय माल्या के प्रतिनिधि द्वारा इसका मोल चुका कर खरीदा गया।
कल्पना करता हूँ कि क्या भारत अथवा कोई भारतीय नीलामकर्ता ऐसा कर सकता था? ...
हे राम!
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विस्तृत समाचार:
http://www.newspostonline.com/world-news/vijay-mallya-buys-gandhi-memorabilia-for-18-mn-third-lead-2009030637471
http://timesofindia.indiatimes.com/India/Gandhis_items_sold_for_USD_18_million_/articleshow/4231248.cms
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 5:29 am 6 टिप्पणियाँ