सोमवार, 14 मई 2007

विवाहोत्सव एवं / अथवा चिट्ठाकार भेंट

सन्दर्भ
पिछली पोस्ट में इस बात का उल्लेख किया था कि जब मुझे फुरसतिया जी ने निमंत्रित किया तो मुझे याद ही न रहा कि मेरी साली का भी विवाह उसी दिन है, फिर उस पर अनूप जी की प्रतिक्रिया। वैसे यह पूरी पोस्ट एक ही होती - सन्दर्भ एक ही था पर विषय-वस्तु कुछ भिन्न होने से इन्हें अलग पोस्ट का रूप देना उचित लगा। पहली घटना को पहले स्थान मिला और शेष यहाँ पर है।

गत 8 मई को हम फुरसतिया जी की भतीजी के विवाह के उत्सव में सम्मिलित होने गये, वहाँ भेंट हुई अनूप जी के मित्रों, परिजनों व चिट्ठाकार मसिजीवी से।

अनूप जी ने तो अपनी बहु-विवरणीय पोस्ट में बहुत कुछ लिख दिया। कुछ-कुछ विवाह सम्बन्धित विवरण, मसीजीवी से भेंट का विस्तृत विवरण, कुछ चिट्ठा जगत में हुई घटनाओं की नब्ज़ भी देखी और अंत में यह कह दिया कि अब हमारे जिम्मे है अपने दृष्टिकोण से ब्लॉगर-भेंट का विवरण प्रस्तुत करना।

गेंद फिर हमारे पाले में आ गयी! वह भी एक दुविधा के साथ!

अब इसे क्या कहें, यह कहें कि हम अनूप जी के यहाँ समारोह में गये थे या कि ब्लॉगर भेंट के लिये! ब्लॉगर भेंट में तो ब्लॉगर ही जाते हैं। अव्वल तो अभी भी हम अपने आप को ब्लॉगरों में नहीँ शुमार करते। या यूँ कहें कि ब्लॉगर के रूप में अभी हम प्रशिक्षु ही हैं, कोई मुस्तकिल दर्जा नहीँ पाये हैं ब्लॉगर का अभी तक या फिर यह कि अपने आप को मुक्त मानते हैं इस संज्ञा से।

तो यदि यह कह दें कि हम तो विवाह में सम्मिलित होने गये थे, तो कहा जायेगा कि फिर ब्लॉगर भेंट के लिये क्योँ नहीं आये ? अरे, देश की राजधानी से चिट्ठाकार (मसिजीवी) आपके नगर में आये और आप हैं कि इसे अपने संज्ञान में ही नहीँ लाते, कोई उत्तरदायित्व नहीं समझते। और तो और अपनी आतिथ्य परम्परा को भी भूल गये। अतिथि के रूप में अपने नगर में आये चिट्ठाकार से भेंट का प्रयोजन नहीँ था क्या?

इसके विपरीत यदि हम यह कहें कि हम तो चिट्ठाकार-भेंट के लिये आये थे, तब तोहमत यह कि आप तो विवाह में आमंत्रित थे, तो इसमें क्यों नहीं सम्मिलित हुए?

ऐसी स्थिति में क्या कहें हम? बड़ी दुविधा है।

खैर, मसिजीवी के आगमन के बाद दोपहर में अनूप जी का फोन आया कि जनाब मसिजीवी आ गये हैं और वे तथा मसिजीवी दोनों ही भेंट के इच्छुक हैं। हमें तो अपनी उपस्थिति ससुराल में भी दर्ज़ करानी थी, पर कुछ ऐसा संयोग हुआ कि उस दिन दोपहर तक हम अंतर्जाल से लड़ते रहे और एक आकस्मिक समस्या के निदान में बहुत समय व्यतीत करना पड़ा। दोपहर बाद हमने अपने को मुक्त किया और साली के विवाह-स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करायी। कुछ देर बाद सायंकाल उत्सव से कुछ समय पूर्व ही हम पहुंचे अनूप जी के यहाँ।

पहले अनूप जी से भेंट हुई और पता चला कि मसिजीवी आ तो गये हैं पर विश्राम-गृह में विश्राम कर रहे हैं। कुछ देर तक अनूप जी से बातें हुयीं (ग़ैर चिट्ठाकारी की) और फिर उन्होंने मिलवाया अपने मित्र विनय अवस्थी जी से। ये भी एक रोचक भेंट थी, ज़रा ध्यान दें, विनय जी अनूप जी के सहपाठी रहे हैं, अनूप जी ने बताया कि ये वही विनय अवस्थी हैं जिनका ज़िक्र जिज्ञासु यायावर के वृत्तांतों में कई स्थानों पर हुआ है, वे अनूप जी के साथ भारत की साईकिल यात्रा में भी सहभागी रहे थे।

विनय जी से बात करने पर मालूम हुआ कि वे उत्तरकाशी में नियुक्त हैं, उस क्षेत्र की बात होते ही मेरी उत्सुकता स्वाभाविक थी| कारण यह कि गढ़वाल मंडल और विशेषकर वह क्षेत्र और उत्तरकाशी, गंगोत्री से लेकर गंगनानी, हर्सिल, बगोरी, दयारा बुग्याल, और उपर गंगा के उद्गम गोमुख ग्लेशियर तथा नंदनवन आदि मुझे अति आकर्षक लगते हैं और इन क्षेत्रों की यात्रायें भी मैंने एकाधिक बार की हैं, कुछ परिचित भी हूं इन स्थलों से, कुछ अन्य भी हैं। उनसे उन क्षेत्रों के बारे में बहुत बातें होती रहीं। उस छोटे सी भेंट में विनय जी बहुत स्पष्टवादी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी मालूम हुए।

एक और बात जो बाद में मालूम पड़ी वह विशेष ध्यान देने योग्य है कि यही सहपाठी विनय जी कालांतर में अनूप जी के साले भी हुए!

कुछ देर बाद अनूप जी ने बताया कि मसिजीवी भी पधार चुके हैं और मेरी उनसे भेंट करा कर वे अन्य अतिथियों के स्वागत में व्यस्त हो गये (देखिये कभी फुरसतिया भी व्यस्त होते हैं, हम तो साक्षी हैं)।

मसीजीवी बहुत मुखर स्वभाव के जान पड़े, उनसे बहुत सी बातें हुयीं। कुछ कुछ ब्लॉगिंग पर (अधिक नहीँ क्योंकि मैंने तो पहले ही इस संज्ञा से अपने को मुक्त मान लिया है फिर क्योंकर इन सीमाओं में रहें) हिन्दी चिट्ठाकारी, नारद के योगदान पर, कुछ व्यावसायिकता की संभावनाओं पर भी। इसके अतिरिक्त कुछ व्यक्तिगत रुचियों और अपने व्यवसाय की भी। जब उनको ज्ञात हुआ कि मैं भी तकनीकी क्षेत्र से हूँ और विभिन्न संकायों में रहा हूं तब उस पर भी चर्चा हुई। उन्होंने कुछ तकनीकी सुझाव और समस्याओं को भी सामने रखा और राय-मशविरा किया।

वार्तालाप में हम इतने मगन थे कि हम भूल गये कि हम तो विवाह में सम्मिलित होने आये हैं और यही नहीं जल्द ही वापस भी जाना है। इतने में बारात का आगमन हो चुका था, सो जयमाल के बाद हमने विदा ली मसिजीवी से और वापस लौट चले। यह भी तय हुआ कि यदि संभव हुआ तो देर रात्रि हम पुन: लौट कर आयेंगे और फिर चर्चा का सिलसिला चलेगा, पर इसकी संभावना कम दिख रही थी और हुआ भी यही - हमारी पुन: भेंट नहीं हुयी और कुछ अन्यान्य बातों पर विचार-विमर्श मूर्त रूप न ले सका।

रविवार, 13 मई 2007

फुरसतिया जी का निमंत्रण और साली का विवाह

मई माह के आरम्भ में एक दिन फुरसतिया जी से बात हुई और उन्होंने बताया कि उनकी भतीजी स्वाति का शुभ-विवाह 8 मई, 2007 को निश्चित हुआ है, और हमें सम्मिलित होने का निमंत्रण भी दिया। फौरी तौर पर उस उत्सव में आने के लिये हमने भी हामी भर दी, अलबत्ता यह अवश्य कहा कि कदाचित लगभग उन्हीं दिनों, शायद एकाध दिन पहले ही मुझे भी कुछ आवश्यक कार्य है। क्या है और स्पष्ट रूप से किस दिन, यह नहीँ याद आ रहा (और वास्तव में भी ऐसा ही था, कुछ लग रहा था कि उन दिनों मुझे कुछ कार्य है, पर क्या है, नहीं ध्यान रहा)

कुछेक घंटे बाद ही (रात्रि तक) मुझे याद आया कि मेरी छोटी साली का भी विवाह उसी दिन (8 मई) को होना तय है, बाद में जब फुरसतिया जी पुन: बात हुई तब उनको बताया कि वह यह कार्य था, जो उस समय याद नहीँ आ रही था। अब क्या था, उनको तो मौज आ गयी। लगे कहने कि आखिर साली की शादी है, क्यों याद रहेगा? तो बकौल अनूप जी - यह समाचार सुखद होते हुए भी, हमारे दृष्टिकोण से साली की शादी क्योंकर सुखद होने लगी, और यही कारण है कि अरुचिकर समाचार मुझे विस्मृत हो गया ;) रोजमर्रा की विविध घटनाओं में चिट्ठे की संभावना विचारते वे तो यहाँ तक कहने लगे कि भई एक पोस्ट बनती है, इस घटना पर भी। (अब तो ठीक है अनूप जी!) यह मैंने बता ही दिया कि यह विवाह भी कानपुर में ही, और मेरे निवास स्थल के समीप ही है अस्तु कोई बात नहीँ हम आपके यहाँ अवश्य उपस्थित होंगे।

क्रमश: