सोमवार, 19 मार्च 2007

कानपुर - बॉब वूल्मर की जन्म स्थली

क्रिकेट विश्वकप 2007 के दिनों बॉब वूल्मर (Robert Andrew Woolmer) के असामयिक निधन से पाकिस्तान टीम को तो आघात लगा ही है तथा सम्पूर्ण क्रिकेट जगत को भी भारी क्षति हुई है। वे एक पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और बाद में एक पेशेवर क्रिकेट प्रशिक्षक के रूप में विख्यात थे।

कानपुर और विश्व क्रिकेट का सम्बन्ध तो विदित ही है परंतु कानपुर शहर और बॉब का भी गहरा संबन्ध रहा है। यहाँ के ही मैक-राबर्ट्स अस्पताल में श्री वूल्मर का जन्म हुआ था। मैक-राबर्ट्स अस्पताल के उस कक्ष में जहाँ श्री वूल्मर का जन्म हुआ था, उसे उनके नाम पर बॉब वूल्मर शल्य चिकित्सा कक्ष रखा गया है। बॉब वूल्मर पाकिस्तान क्रिकेट टीम के प्रशिक्षक के रूप में 2005 की भारत - पाकिस्तान प्रतियोगिता में व इसके पूर्व भी कानपुर आ चुके हैं। अपने कानपुर प्रवास के दौरान उन्होंने अपने जन्म स्थान, इस अस्पताल का भी दौरा किया था और चिकित्सकों व अधिकारियों से भेंट की थी।

शहर वासियों व पाठकों की ओर से श्री वूल्मर को हार्दिक श्रद्धांजलि।

बुधवार, 7 मार्च 2007

कॉफ़ी-कप में तूफ़ान - मोहल्ले के कॉफ़ी-हाउस से स्टारबक्स तक

आजकल तूफानों और झटकों का दौर है। अभी कुछ ही दिन पहले हमारे मोहल्ले में बहुत बहस-मुबाहिसा हुआ। अपनी बात कहने के सभी हथकंडे अपनाये गये। इधर से पोस्ट... उधर से टिप्पणी वगैरह..। जैसी उम्मीद थी, वैसे ही हुआ। खूब वाद-विवाद दृष्टांत आदि हुए। अंतत: एक सद्भावना भरे पत्र के बाद मुआमला कुछ ठंडा पड़ने लगा।

यह अभी खत्म हुआ नहीं था कि चिट्ठा-जगत में एक कॉफ़ी-हाउस खुल गया जहां हर कोई आ जा सकता था। लोग-बाग खुश हुए, तालियाँ भी बजायीँ कि अब तो यहाँ काफी की चुस्कियों का आनन्द भी मिलेगा। कॉफ़ी-हाउस तो खुलते ही कॉफी का वास्तविक (कड़वा) स्वाद दिलाने लगा। जब लोगों ने कहा कि कॉफी कड़वी है तब उन्हें दूसरे बाज़ार वालों का भी समर्थन मिलने लगा। वे भी कहने लगे - नहीँ-नहीँ कॉफी बिलकुल ठीक है और कुछ एक आभासी दावे भी पेश कर दिये। कॉफ़ी-हाउस वालों की हौसलाआफ़ज़ाई हो गयी। अपनी पुरानी बात अगले दिन पुन: प्रस्तुत कर दी - इस बार अपने ग्राहकों की शिकायतों और बाज़ार-वालों के समर्थन के साथ। एक ही बात कई बार और कई स्थानों पर सुनायी देने लगी

जब चिट्ठों और ब्लॉगरों से ध्यान हटा तो देखा कि अंतर्राष्ट्रीय कॉफ़ी-हाउस में भी हल्ला-गुल्ला हो रहा है। एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी वॉल-मार्ट और मित्तल जी का गठबंधन पहले ही समाजवादी जनता को भयभीत किए हुए था, एक और भी आने को तैयार है। अब हमारे यहाँ काफी पीने वालों की कोई कमी तो है नहीँ। हम तो बहुत पहले से एक बहुराष्ट्रीय ब्राण्ड की काफी पीते आ रहे हैं। कॉफी की एक और बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने भारत की ओर रुख किया, नाम तो बहुत से लोग जानते हैं - स्टारबक्स

हमारे देश की मशहूर सौन्दर्य प्रसाधन विशेषज्ञा शाहनाज़ जी, जो कि स्वयं में ही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं और आयुर्वेदिक सौन्दर्य-प्रसाधनों से संबद्ध एक प्रसिद्ध व्यवसाय भी चलाती हैं। जब उन्होंने अपनी रिटेल-श्रृंखला की बात चलाई तो उसका नामकरण स्टारस्ट्रक्स रख डाला। यह नाम उपरोक्त विदेशी कम्पनी के नाम से कुछ मिलता जुलता था तो उस विदेशी कम्पनी के कॉफी हाऊस वालों को भी काफी की कड़वाहट महसूस होने लगी और भारतीय सरकार के दरबार में अपनी दु:ख भरी शिकायत पेश करी। हमारी सौन्दर्य प्रसाधन विशेषज्ञा ने भी कहा - आखिर बहुतेरे मिलते जुलते नाम होते हैं, करने दो उन्हें विरोध, हम भी मुकाबिला करेंगे।

इस विषय की अधिक जानकारी संजाल पर
http://news.yahoo.com/s/nm/20070305/od_nm/starbucks_starstrucks_dc
http://starbucksgossip.typepad.com/_/2007/03/starbucks_doesn.html

आजकल कॉफ़ी कुछ ज्यादा ही कड़वी हो चली है, चाहे वह मोहल्ले के बज़ार की हो, अपने कॉफी हाउस की, या फिर हो स्टारबक्स की।

चलते-चलते

एक वास्तविक भूकंप हमारे लोकप्रिय चिट्ठाकार को भी अनुभूत हुआ। सर्वशक्तिमान की कृपा से वे न केवल सुरक्षित रहे, वरन् अन्य पाठकों को इसका विवरण भी तुरंत दे डाला।


*लेख में प्रयुक्त ब्राण्डों के नाम उनकी कम्पनियों द्वारा पंजीकृत हैं

सोमवार, 5 मार्च 2007

कानपुर की अनोखी होली - स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास से

कानपुर की अनोखी होली
हमारे यहाँ भी अजीब चलन है| जब दुनिया भर होली खेल कर वापस अपने अपने कामों मे लग गयी होगी तब भी हमारे यहां होली की ही मौज बनी रहेगी। हम तो होली का त्योहार अपने ही समय से मनायेंगे। इस बात पर पहले कभी जीतू जी ने भी अपने चिट्ठे पर प्रकाश डाला था।

कानपुर शहर में होली की एक विशेष परम्परा हो गयी है। यहाँ होली का त्योहार लगभग 4-7 दिन तक चलता है। किसी वर्ष 3-4 दिन ही और कभी-कभी 7 दिन तक - यह निर्भर करता है नक्षत्रों की स्थिति पर। सामान्य रूप से जिस दिन देश भर में होली होती है, यहाँ पर भी उसी दिन मनायी जाती है पर उससे भी कहीं अधिक यह अंतिम दिन मनायी जाती है। इस दिन संध्या काल में गंगा के किनारे मेला भी लगता है। इस दौरान सभी दिनों शहर के थोक व्यापार लगभग बन्द ही रहते हैं और आखिरी दिन अर्थात् मेले वाले दिन होली की उमंग और रंग, दोनों ही सबसे अधिक होते हैं और इस दिन तो न केवल थोक वरन् फुटकर बाज़ार और स्थानीय कार्यालय भी बन्द रहते हैं।

यह क्यों और कब से होता आ रहा है? यह कोई बहुत पुरानी या कोई धर्मिक परम्परा नहीं है, कोई मान्यता भी नहीं। इस प्रकार होली मनाने का चलन कानपुर में अंग्रेज़ी हुकूमत के ज़माने से प्रारम्भ हुआ था और इसकी पृष्ठभूमि में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों की और उन पर ब्रिटिश सरकार के ज़ुल्म की दास्तान है।
स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास से
कानपुर के पुराने शहर के मध्य में स्थित हैं कुछ मोहल्ले - जिनमें प्रमुख हैं - मनीराम बगिया, हटिया, फीलखाना आदि। ब्रिटिश हुकूमत के समय इन मुहल्लों में शहर के प्रमुख क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी रहा करते थे और अन्य शहरों व प्रदेशों के अन्य क्रांतिकारी भी यहां आते-जाते रहते थे। इनमें से प्रमुख नाम जो याद आ रहे हैं उनमें चन्द्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष बोस आदि भी थे। वे अपनी सार्वजनिक सभायें भी यहां करते और विभिन्न प्रकार की योजनाओं पर विचार भी। यहाँ के हटिया क्षेत्र में एक सार्वजनिक पार्क ऐसी कई सभाओं का साक्षी रहा है।

उन्हीं दिनों एक बार होली के ठीक पहले ऐसी ही एक सभा यहाँ के हटिया पार्क में चल रही थी। कई स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी उस सभा में शामिल थे। ब्रिटिश हुकूमत इनके कारनामों से त्रस्त हो चुकी थी और इनको गिरफ्तार करने की फिराक में थी। इस अवसर का लाभ उठाते हुए अंग्रेज़ी पुलिस के अफसरों ने उस पार्क पर धावा बोल दिया और वहाँ मौजूद क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर उनको जेल में बन्द कर दिया। सरकार का विरोध करने के आरोप लगाये गये उनपर।

स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तारी का समाचार जंगल की आग की तरह शहर भर में फैल गया। होली के पर्व पर विदेशी हुकूमत की ऐसी धांधागर्दी का विरोध करना तय किया गया। व्यापारी और आम-नागरिक सभी ने आम सहमति बनायी और विरोध प्रकट करने के लिये होली जैसे महत्वपूर्ण पर्व का बहिष्कार करना निश्चित हुआ। नागरिकों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया कि जब तक अंग्रेज़ी सरकार हमारे क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को रिहा नहीँ करती, कोई शहरवासी होली नहीँ मनायेगा और इस प्रकार नियत तिथि को होली नहीँ मनायी गयी

पहले ब्रिटिश सरकार ने समझा होगा कि यह मात्र एक ही दिन का विरोध है परंतु जब होली पर भी हमारे क्रांतिकारियों को मुक्त नहीँ किया गया तब होली के बाद भी शहर के प्रमुख बाज़ार बंद रखे गये। अंतत: कुछ दिन बाद सरकार को जनता के विरोध के आगे घुटने टेक देने पड़े और उन बंदी क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को रिहा कर दिया गया।

फिर क्या था, शहर के नागरिकों में उल्लास था, खुशी थी अपनी विजय की और क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के मुक्त होने की। तब होली का त्योहार पहले की अपेक्षा अधिक जोश और उमंग से मनाया गया। भंग की तरंग और होली के रंगों के साथ। जेल के ही पास गंगा के पावन तट पर बने सरसैया घाट पर वृहद मेले का आयोजन किया गया। नक्षत्र गणना के अनुसार उस दिन अनुराधा नक्षत्र था अत: वह एक मानक दिवस बन गया। कानपुर में उस वर्ष के बाद प्रतिवर्ष होली को उस विजय रूपी पर्व और क्रांतिकारियों की मुक्ति की वर्षगाँठ के रूप में मनाया जाने लगा।

वर्तमान परिदृश्य
अंग्रेज़ तो कब के चले गये हैं पर हम शहरवासी स्वतंत्रता के पुजारियों की उस विजय-स्मृति में होली के बाद अनुराधा नक्षत्र वाले दिन भरपूर होली खेल कर और सरसैया घाट पर गंगा मेले के रूप में मनाते हैं। कभी तो यह होता है होली के 3-4 दिन बाद ही और कभी 5-7 दिन बाद।

वर्तमान काल में इसका रूप कुछ और भी बदल गया है। तेज़ी से बदलते सामाजिक परिवेश में अब उन स्वतंत्रता सेनानियों की घटना को तो बहुतों ने जाना ही नहीँ और इसकी विशेष आवश्यकता भी अनुभव नहीँ करी जाती। शहर की मुख्य मंडियाँ व थोक बाज़ार अब भी 3-6 दिन आंशिक या पूर्ण रूप से बंद रहते हैं। श्रमिक और कर्मचारी भी इन दिनों लगभग अनुपस्थित ही रहते हैं। अब तो बहुत से उद्योगपति और व्यापारी इस अवसर को अलग रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि वर्ष भर इस प्रकार लगतार 3-6 दिन की छुट्टी तो कभी और सम्भव नहीँ होती तो वे इस अवसर का लाभ उठाते हुए मित्रों अथवा परिवार सहित किसी तीर्थस्थान अथवा पर्यटन स्थल पर भ्रमण कर सप्ताह भर छुट्टी मनाते हैं। उधर गंगा मेले को जन-सम्पर्क का अच्छा अवसर मान जन प्रतिनिधि भी जन-सामान्य के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज़ करना नहीँ भूलते और अपनी लोकप्रियता का दायरा बढ़ाने का भरसक प्रयास करते हैं।

तो चलते हैं हम अभी तो। गंगा मेला तो इस वर्ष (2007) में 10 मार्च को निश्चित हुआ है। तब होगी कानपुर की असली होली। आज होली के दिन यदि कोई होली मनाने से वंचित रह गया हो तो अभी मौका नही गया है। कानपुर आपकी प्रतीक्षा करेगा गंगा मेले तक।

अभी तो हम अपने एक मित्र के घर होली की काव्य-गोष्ठी का आनन्द ले कर आ रहे हैं। फुरसतिया उर्फ अनूप जी भी साथ में थे । कभी इसका जिक्र बाद में...