सामूहिक गरियाने की गणित, लाभ व उपयोग
हाल ही में एक बंधु ने हम पर मज़ाकिया आरोप लगाया कि हम अपने कुछ साथियों को गरियाये रहे। उस समूह के हम स्वयं भी जबरिया सदस्य हैं। सही बात तो यह है कि हमने वास्तव में गरियाया तो नहीँ ही था, पर जब इस पर कुछ ध्यान गया, विचार-मंथन किया तो कुछ विचार अमूल्य रत्न की भाँति मिले। कुछ-कुछ वैसे ही - जैसे कि दूघ के मंथन से मक्खन या जैसे देवासुर समुद्र मंथन होने पर, पहले हलाहल व उसके बाद अलभ्य रत्न मिले थे।
हलाहल तो हम पी(क) गये! विचार रत्नों को आपके साथ बाँटते हैं।
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गरियाने से नुकसान तो जो होता हो वह तो मालूम नहीँ, पर उससे कुछ तो फायदे होते हैं ही। गरियाने की परम्परा निश्चय ही उतनी ही प्राचीन होगी जितनी कि मानव-सभ्यता। शायद यह प्रकृति प्रदत्त वरदान हो, शायद मनोवैज्ञानिक भी मानते हों कि गरियाने से मन पर बोझ हट जाता हो! निर्बल का संबल है यह। यहाँ पर हम गरियाने के एक विशिष्ट स्वरूप की बात कर रहे हैं।
गरियाने से हमें कोई उज्र भी नहीँ। अपने आप पर भी! सामूहिक तौर पर गरियाने की बात कहें तब तो बेहिचक अनेक अवसरों पर गरिया चुके हैं, जब उस समूह में हम स्वयं भी हों।
अजी, बड़ा आनन्द आता है!
वह कैसे?
आप मात्र अपने आप को गरियाने की कीमत पर पूरे समूह को बुरा भला कहते हैं। सामान्यत: कोई आपको कुछ कहता भी नहीँ क्योंकि आप स्वयं उस समूह के सदस्य होते हैं। आप एक सदस्य के बराबर स्वयं को गरियाने के एवज में अनेक लोगों को गरियाने का आत्म-सुख प्राप्त करते हैं। नफे-नुकसान की दृष्टि से देखें तो भी यह मेरे विचार से नुकसान का सौदा नहीँ।
गणित
ऐकिक नियम के हिसाब से भी यदि उदाहरण देखें:
- आप यदि एक व्यक्ति को गरियाते है तो आप को (1अ) मात्रा में सुख मिलता है
- यदि आप 10 व्यक्तियों के समूह को, जिसके आप भी सदस्य हैं, गरियाते है तो
यदि 1 व्यक्ति को गरियाने का सुख = (1अ)
तब 10 व्यक्तियोँ को गरियाने का सुख = 10 x (1अ) = (10अ)
घटायें:
(स्वयं के ऊपर गरियाने से न मिलने वाला सुख) = - (1अ)
(अपने ऊपर गरियाने से मिलने वाले दुख: के लिये) = - (1अ)
शेष = (10अ) - (2अ) = (8अ)
वाह! कैसा लाभ है यह प्रभो!
कुछ उपयोग
1.) यदि आप के साथी कर्मचारियों / कार्य संस्थान का रवैया आपको खराब लगता है तो आप स्वयं उस संस्था/समूह/कम्पनी के सभी लोगों की कार्य-प्रणाली पर गरिया सकते हैं। आप की बात में कोई आत्मश्लाघा भी नहीं दिखेगी और आप को सामूहिक रूप से गरियाने का उपरिवर्णित नियम के अनुसार सुख भी मिलेगा
2.) यदि आपको अपने पड़ोसी, मुहल्ले वालों को किसी बात पर गरियाना है, तब भी चाहे दबी ज़ुबान में ही सही, सभी मुहल्ले वालों को, स्वयं को भी विशेष रूप से शामिल करते हुए गरियायें।
3.) प्रत्यक्ष उदाहरण देखें - जो हम सभी ने प्राय: अनुभव किया होगा। सभी देशवासियों पर, सामूहिक रूप से, उनकी किसी भी प्रवृत्ति पर गरियाने से जो करोड़ों गुना (क्षणिक ही सही) सुख और अपनी कर्तव्यपरायणता का संतोष मिलता है, उसका अनुभव हममें से बहुतों ने अनेकों बार किया होगा।
चुम्बकीय बिंदु
1.) चूँकि परोक्ष रूप से आप अपने को भी गरिया रहे होते हैं, इसलिये लोगों में आपकी सत्यवादिता और न्यायप्रियता की भी छवि बनेगी। आखिर आप कोई अपने स्वार्थे हित की बात करते तो नहीँ ही जान पड़ते, तो कोई अपनी भी बुराई क्योंकर करेगा? आखिर बात में कुछ दम तो होगी ही न?
2.) यदि इस प्रकार सामूहिक रूप से गरियाने की आदत बनाना है तो एक बात का और भी ध्यान रखना होगा। गरियाने के विपरीत कभी-कभी किसी की प्रशंसा भी कर दें, बहुत कम, बस यदा कदा ही, विशेषकर जब गरिया पाने का किंचित मात्र भी कारण / अवसर न हो। इससे होगा यह कि, आपके ऊपर सदा ही गरियाने वाला जैसी मुहर नहीँ लगेगी और लोगों में यह विश्वास बढ़ेगा कि आप उचित, व्यक्ति की, उचित कारणों से प्रशंसा भी करते हैं। हाँ इस मंत्र का प्रयोग वैसे ही मर्यादित (Limited) रूप से करें, जैसे कि दाल में नमक - या फिर यह कहें कि खाद्य पदार्थों में सुगन्धि का प्रयोग।
3.) जैसे, जैसे आपकी सत्यवादिता की छवि बढ़ेगी, आपके गरियाने को वरीयता / मान्यता प्राप्त होगी और शायद आपके प्रति व्यक्ति गरियाने से प्राप्त आत्म-सुख की दर में भी वृद्धि होगी
4.) अंत में एक आत्म संतुष्टि और अपने को बचाने का असरदार उपाय - पहले तो आप सभी के साथ स्वयं को गरिया लेते हैं, सुख लूट लेते हैं। फिर भी यदि आत्म-ग्लानि शेष हो तो अपने को व अन्य आत्मीय जनों को यह समझा सकते हैं कि आप स्वयं तो अपवाद हैं। अब नियम हैं तो अपवाद भी होंगे ही - आखिर लंका में सभी असुर थोड़े ही थे