आज बाबा नागार्जुन के संस्मरण से सम्बन्धित एक पोस्ट पढ़ी बाबा नागार्जुन को मैंने लिखते हुए भी देखा है, जिसमें कि शास्त्री जी ने बाबा नागार्जुन के सान्निध्य में बिताये कुछ दिनों का वर्णन किया है। शास्त्री जी ने बाबा नागार्जुन के बारे में अन्य सचित्र आलेख भी लिखे हैं। शास्त्री जी लिखते हैं
रात में जब मेरी आँख खुली तो मैंने सोचा कि एक बार बाबा को देख आऊँ। मैं जब उनको देखने गया तो बाबा ट्यूब लाइट जला कर एक हाथ में मैंग्नेफाइंग ग्लास ग्लास लिए हुए थे और कुछ लिख रहे थे। मैंने बाबा को डिस्टर्ब करना उचित नही समझा और उल्टे पाँव लौट आया।
रात में जब 1-2 बजे मेरी आँख खुलती थी तो बाबा के एक हाथ में मैग्नेफाइंग-ग्लास होता था और दूसरे हाथ में पेन।
मैंने बाबा को 76 साल की उम्र में भी रात में कुछ लिखते हुए ही पाया था।
बाबा नागार्जुन की एक कविता (कदाचित सर्वाधिक लोकप्रिय भी), "बादल को घिरते देखा है..." मेरी सर्वाधिक प्रिय कविताओं में सर्वोपरि है, इस का स्वीकरण मैंने
अन्यत्र भी कर चुका हूँ, अंतर्जाल पर भी यह सुन्दर कविता उपलब्ध है ही। मैं उनकी कविता का साहित्यिक स्तर आँकने के योग्य तो नहीँ हूँ, पर इतना अवश्य है कि इस कविता की हर एक पंक्ति और हर एक शब्द विशेष रूप से चयनित है और सम्पूर्ण है।
यह एक विस्मयकारी संयोग था कि उनके संस्मरण पढ़कर और उस पर उनकी पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर मुझे उनकी कविता और पोस्ट के शीर्षक में कुछ ध्वन्यात्मक साम्य लगा और कुछ पंक्तियाँ सहज ही बन गयीँ, उन पंक्तियों को फिर संपादित कर यहाँ लिख दिया है ताकि कि ये विस्मृत न हो जायें। साथ ही उनकी कविताओं की कुछ कड़ियाँ भी सन्दर्भ के लिये। मैं किसी भी स्तर का कोई कवि या रचनाकार होने का भ्रम नहीँ पाल रहा हूँ, मात्र सहेजने के प्रयास से इन्हें यहाँ लिख दिया है। कदाचित कभी संशोधित भी कर दी जाय।
बादल को घिरते देखा है !बाबा को लिखते देखा है...
जीवन पथ के उस पड़ाव पर,
दृष्टि क्षीण थी पर नहीँ पराजित।
निशाकाल के शांत प्रहर में,
नभ में था विस्तार तिमिर का,
पर आलोकित कृत्रिम प्रकाश से
अंतर्कक्ष की मद्धिम ज्योति में
उस एकाकी कवि के द्वारा
साहित्य सृजन होते देखा है।
जब शयन रत थे प्राणिमात्र सब,कवि मन को कैसा विश्राम?
निस्तब्ध शांति के ऐसे क्षण में,
वीणापाणि के वरद पुत्र को
मनोयोग से चिंतन करते,
लेखन - मनन करते देखा है।
बाबा को लिखते देखा है...सन्दर्भ हेतु बाबा नागार्जुन की उपरिवर्णित कविता की कुछ कड़ियाँ