कॉनफिकर वाइरस संक्रमण - त्वरित परीक्षण
कॉनफिकर संक्रमण परीक्षण चार्ट
प्रथम और अंतरिम प्रयास
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 4:05 am 1 टिप्पणियाँ
लेबल: कम्प्यूटर सुरक्षा, कॉनफिकर, conficker, conficker c, test, virus
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 4:25 am 6 टिप्पणियाँ
लेबल: टिप्प्णी, मेटा ब्लॉगिंग, comments, meta blogging
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 4:47 am 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अपमान, anger, open source
आज बाबा नागार्जुन के संस्मरण से सम्बन्धित एक पोस्ट पढ़ी बाबा नागार्जुन को मैंने लिखते हुए भी देखा है, जिसमें कि शास्त्री जी ने बाबा नागार्जुन के सान्निध्य में बिताये कुछ दिनों का वर्णन किया है। शास्त्री जी ने बाबा नागार्जुन के बारे में अन्य सचित्र आलेख भी लिखे हैं। शास्त्री जी लिखते हैं
रात में जब मेरी आँख खुली तो मैंने सोचा कि एक बार बाबा को देख आऊँ। मैं जब उनको देखने गया तो बाबा ट्यूब लाइट जला कर एक हाथ में मैंग्नेफाइंग ग्लास ग्लास लिए हुए थे और कुछ लिख रहे थे। मैंने बाबा को डिस्टर्ब करना उचित नही समझा और उल्टे पाँव लौट आया।बाबा नागार्जुन की एक कविता (कदाचित सर्वाधिक लोकप्रिय भी), "बादल को घिरते देखा है..." मेरी सर्वाधिक प्रिय कविताओं में सर्वोपरि है, इस का स्वीकरण मैंने अन्यत्र भी कर चुका हूँ, अंतर्जाल पर भी यह सुन्दर कविता उपलब्ध है ही। मैं उनकी कविता का साहित्यिक स्तर आँकने के योग्य तो नहीँ हूँ, पर इतना अवश्य है कि इस कविता की हर एक पंक्ति और हर एक शब्द विशेष रूप से चयनित है और सम्पूर्ण है।रात में जब 1-2 बजे मेरी आँख खुलती थी तो बाबा के एक हाथ में मैग्नेफाइंग-ग्लास होता था और दूसरे हाथ में पेन।
मैंने बाबा को 76 साल की उम्र में भी रात में कुछ लिखते हुए ही पाया था।
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 11:21 pm 7 टिप्पणियाँ
कितनी विडम्बना की बात है यह कि जिस व्यक्ति को देश व सम्पूर्ण विश्व सत्य, शांति और अहिंसा के पुजारी के रूप में जानता है, जिन्हें हम भारतवासी राष्ट्रपिता का सम्बोधन देते हैं, उन्हीँ की निजी वस्तुओं की सार्वजनिक नीलामी, विश्व के भौतिक रूप से सम्पन्न राष्ट्र सं. रा. अमेरिका के व्यवसायी द्वारा धन, व शायद लोकप्रियता प्राप्त करने के लोभ के वशीभूत हो कर दी गयी।
समाचार के अनुसार, न केवल यह बल्कि उसने तो इन वस्तुओं को भारत को वापस करने का प्रस्ताव स-शर्त रखा - यदि भारत अपनी रक्षा-नीतियों (रक्षा-खर्च) में कटौती करे (व उन्हें स्वास्थय सेवाओं में लगाये) परंतु यह भी शायद अभिनय ही था। वह भी रखा या नहीँ, यह तो आने वाले समाचारों से विस्तार से मालूम हो जायेगा।
शायद अधिकृत रूप से इसे रोकने में वह सरकार असमर्थ थी, अथवा नहीँ, यह तो कानून-विज्ञ जानें परंतु मेरी दृष्टि में यह घटना वहाँ के समाज / सरकार / व्यवसायिकता की निम्न स्तरीय मानसिकता को दर्शाती है। यही देश विश्व में लोकमत, न्याय व शांति प्रसार का ढिढोरा पीटता दिखायी देता है
क्या इसे वह सरकार अथवा व्यवसायी वास्तव में चाहते तो क्या उनके द्वारा इसे रोका जाना चाहिये था? क्या दूसरे राष्ट्र के व्यक्ति को ऐसे परिप्रेक्ष्य में भारत को अपनी नीति निर्धारण के निर्देश देने का प्रयास उचित है?
और यह भी विडम्बना ही है कि उसी राष्ट्रपिता, जिनके जन्म-दिन पर श्रद्धा के प्रतीकस्वरूप पूरे देश में मदिरा की सार्वजनिक बिक्री पर प्रतिबन्ध है, उनकी निजी वस्तुओं को सार्वजनिक नीलामी में उसी मदिरा के प्रमुख भारतीय व्यवसायी, विजय माल्या के प्रतिनिधि द्वारा इसका मोल चुका कर खरीदा गया।
कल्पना करता हूँ कि क्या भारत अथवा कोई भारतीय नीलामकर्ता ऐसा कर सकता था? ...
हे राम!
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विस्तृत समाचार:
http://www.newspostonline.com/world-news/vijay-mallya-buys-gandhi-memorabilia-for-18-mn-third-lead-2009030637471
http://timesofindia.indiatimes.com/India/Gandhis_items_sold_for_USD_18_million_/articleshow/4231248.cms
प्रस्तुतकर्ता Rajeev (राजीव) पर 5:29 am 6 टिप्पणियाँ