शनिवार, 27 अक्तूबर 2007

चारु चन्द्र की चंचल किरणें...

इस शरद पूर्णिमा पर हम भी अवसर को हाथ से जाने नहीँ देना चाहते थे*। सोचा कि मौका अच्छा है, चाँद की छवि को सहेज लिया जाय।

तो इस बार विचार आया कि चाँद के साथ शरद पूर्णिमा की चाँदनी के छायांकन का भी प्रयास किया जाय। रात्रि का समय और हम चले घर की छत पर। बिजली भी गुल। फ़कत माहताब की ही रोशनी हमारे मुहल्ले और शहर को आलोकित कर रही थी। फोटोग्राफी के लिये उपयुक्त अवसर! अलग अलग दिशाओं से दिखने वाली दृष्यावली को देखा तो कोई भी दृश्य ऐसा न दिखा कि जो विशेष रूप से आकर्षक हो और चाँद की दिशा में भी हो। खैर, हमें तो छायांकन करना ही था। कुछ देर उधेड़-बुन में चहल कदमी करते रहे। शरद पूर्णिमा पर चंद्र किरणॉं से होने वाली अमृत-वर्षा के बीच हमने कुछ समय फोटोग्राफी के प्रयोग किये और फिर कुछ संपादन। कुछ ऐसा दृश्य था इस चाँदनी रात में हमारे घर की छत से -


यह चित्र कुछ मायनों में पूर्णत: सत्य नहीँ है - मतलब यह नहीँ कि यह झूठा ही है। है तो यह सच्चा ही, पर कुछ तकनीकी जुगाड़ से। चाँद और दृष्यावली - इन दोनों में बहुत भिन्नताएं होती हैं। प्रकाश के स्तर में भी बहुत फर्क होता है, और लेंस को दिखायी देने वाले आकार में भी। इसलिये इस दोनों दृश्यों को अलग अलग छायांकित किया गया और फिर सम्पादन से इन्हें संयोजित किया गया। यह सही है कि दोनों चित्र लगभग समान परिस्थितियों में, अलग - अलग समय में, मिन्न सेटिंग्स पर लिये गये है। दोनों ही चित्र रात के हैं।

यह रहे इनके अलग अलग चित्र -
अ) छत से केवल चाँदनी के प्रकाश में खीँचा गया छाया चित्र
sharad-poornima-2007-roof-night-shot-01
ब) चन्द्रमा का छाया चित्र
sharad-poornima-2007-moon-01
सम्पादन में बहुत अधिक फेरबदल तो नहीँ, कुछ आकार व प्रकाश स्तर का संयोजन और कुछ नील वर्ण का प्रभाव - बस इतना ही किया गया है संयुक्त चित्र को बनाने में।

तकनीकी जानकारी
तकनीकी जानकारी भी लिख देना ठीक होगा, ताकि सन्दर्भे के लिये उपयुक्त रहे।
अ) दृष्यावली -
ISO = 100, F = 8.0, Exposure = 137 Seconds, Focal Length = 55mm
अधिक देर का एक्सपोज़र देना आवश्यक था, जिससे कि मात्र चाँदनी के प्रकाश से ही पर्याप्त रूप से दृश्यावली आलोकित हो जाय। और इसलिये त्रिपदी (tripod) का प्रयोग भी किया गया। दृष्य का विस्तार अधिक हो, इसलिये बहुत अधिक फोकल लेंग्थ का प्रयोग नहीँ किया जा सकता था।
ब) चन्द्रमा -
ISO = 100, F = 16.0, Exposure = 1/125 Seconds, Focal Length = 263 mm
अधिक कंट्रास्ट व स्पष्टता के लिये कम एपरचर का प्रयोग किया गया। चंद्रमा के सापेक्ष आकार को प्राथमिकता देने के लिये, अधिक फोकल लेंग्थ का प्रयोग किया गया और इसी कारण से इस चित्र में भी त्रिपदी अत्यावश्यक थी पर खराबी आ जाने से उसका प्रयोग नहीँ हो सका और यह चित्र बिना त्रिपदी के ही लिया गया।

* एक बार पहले भी हमने चन्द्र देव के छायांकन का प्रयास किया है, वह भी एक और विशेष अवसर पर - विगत मई 2007 में Blue Moon के अवसर पर। किसी एक ही माह में दो बार पूर्णिमा पड़ने पर उसे अंग्रेज़ी में ब्लू मून कहते हैं और ऐसे अवसर बिरले ही होते हैं जिसके कारण Once In a Blue Moon कहावत भी चल पड़ी।
Once in a Blue Moon, 31 May 2007 Kanpur, India DPP_0276

19 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अरे टण्डन जी, इस पोस्ट को देख कर आपका तो गण्डाबन्द शिष्य बनना है हमें! एक फेस तो फेस प्रवचन की दरकार है। और आप को छोटे-मोटे टेलिस्कोप की भी जानकारी हो तो एक हमें खरीदना है कम बजट वाला। अंतरिक्ष को खंगालने की बहुत चाह है!
इस पोस्ट ने तो मुझे गदगदायमान कर दिया है!

बेनामी ने कहा…

अरे गजनट! इसी के लिये कहा गया होगा- चांद अंगड़ाइयां ले रहा है, चांदनी मुस्कराने लगी है। आपको बधाई पाण्डेयजी जैसे लोग आपसे गंडा बंधवाने के लिये उत्सुक हैं। :)

ALOK PURANIK ने कहा…

चांद को देखकर ज्ञानजी को टेलिस्कोप याद आ रहा है, हाऊ अनएस्थेटिक, बताइये, इन्हे मधुबाला को देखकर कोई ब्यूटी सोप याद आता होगा।
चांद देखकर हमें तो वह शेर याद आता है जी-
चांद के साथ कुछ दर्द पुराने निकले
कितने गम थे, जो तेरे गम के बहाने निकले।

काकेश ने कहा…

आलोक जी से सहमत होते हुए आपकी फोटोग्राफिक कला को सलाम. पांडे जी को गंडा बांध दें तो बताइयेगा हम मीका का भय दिखा कर पांडे जी से गंडा बंधवा लेंगे.:-)

हमें जो याद आया वो गाना है..

चांद फिर निकला , मगर तुम ना आये
जला फिर मेरा दिल ,करूं क्या में हाये..
चांद फिर निकला.............

अभय तिवारी ने कहा…

सही है राजीव भाई.. शिष्य तैयार हैं वो भी जाने माने.. फिर क्या खोल लीजिये दुकान.. हम भी एनरोल हो जायेंगे..

अनिल रघुराज ने कहा…

राजीव भाई, यही कुतूहल, यही नया कुछ करने की ललक तो जिंदगी है। यही बालपना तो हमें सहज और सुंदर रखता है। चांद की तस्वीरें यकीनन अच्छी हैं, लेकिन उससे अच्छी है वह झांकी जो आपके अंदर से नजर आई है।

बोधिसत्व ने कहा…

राजीव भाई एक अंतरिम सलाह है
बहुत समझदार चेला मठ पर कब्जा कर लेता है। इसलिए......आगे आप समझदार है...
मोहक पोस्ट

Sanjeet Tripathi ने कहा…

मस्त!! पन वो क्या है ना कि इत्ते वड्डे वड्डे लोग इधर चेला बनने को खड़ा है कि अपन को तो साईड में ही खड़े रह कर देखना पड़ेंगा!

Rajeev (राजीव) ने कहा…

>ज्ञान जी,
आपकी टिप्पणी खूब रही! कारण - यह कि वैसे तो इस पोस्ट और टेलिस्कोप का कोई सीधा संबंध नहीं है परंतु कुछ तो है जिस कारण आपने टेलिस्कोप का ज़िक्र किया, भले ही यह तुक्का मानकर कि मैं शायद टेलिस्कोप के बारे में जिज्ञासु / जानकार होऊँ। तो आपका यह तीर बिलकुल ठीक रहा। उससे बड़ी बात यह रही कि मैं स्वयं भूल गया था कि मैं इस प्रकार की जानकारी का बहुत संकलन, व कुछ प्रयास भी कर चुका हूँ। आपकी टिप्पणी ने याद दिला दी। रही टेलिस्कोप की बात, तो पहले एक तुरंत छोटी जवाबी पोस्ट की जायगी। लेकिन यह लिखने का मौका मिले उससे पहले फ़टाफ़ट सलाह - छोटे मोटे टेलिस्कोप को न ही खरीदें। लगभग उतने ही दाम में लेकिन इच्छा और मेहनत के साथ कम ही कीमत में बहुत अच्छा सा टेलिस्कोप स्वयं बनाना संभव है। अधिक के लिये शायद पोस्ट ही ठीक हो।

>अनूप जी,
धन्यवाद! क्या मौके का कोटेशन दिया है आपने, चाँद और चाँदनी दोनों का ही आँखों देखा हाल बयान किया है।

>आलोक जी,
यही बात तो हमें भी अच्छी लगते हुये भी विषयेतर लगी पर यह शायद जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण हो। आईडियली तो होना यह चाहिये कि ब्यूटी सोप देख कर ही मधुबाला की याद हो आये।

>काकेश जी,
अजी कौन सा गंडा, हम कोई गुरु-शिष्य परंपरा वाले थोड़े ही हैं। रही फ़ोटोग्राफ़ी, तो हम भी कभी कभी सीरियसली फोटो खीँचने का अभिनय करते रहते हैं। कभी तुक्का निशाने पर बैठता है, तीर बन।

>अभय जी,
यह बात तो सही है, जाने माने व्यक्तियों को शिष्य बनाने से दूकान तो सही चलती है। राय है तो विचारणीय, यदि कभी खोली ही जाय दूकान। आपने एनरोल होने की बात कही वह भी कम महत्वपूर्ण नहीँ। मुम्बई का वासी, फिल्म और सीरियल से जुड़ा, फ़ोटोग्राफी का स्वयं ही ज्ञानी वह यदि एनरोल होने की बात करे तो क्यों न हो यह विचारणीय।

>अनिल भाई,
आपकी टिप्पणी तो फ़िलॉसॉफिकल है। ऐसा गहन आत्म-विश्लेषण तो हमे नहीँ किया फ़ोटोग्राफी के दौरान। बस मच्छरों से स्वयं को कटवाते हुए कैमरे से एक्सपेरीमेंट करते रहे। देखिये आलोक जी फिर कहेंगे कि जहाँ माधुर्य रस दिखना था वहाँ अनिल जी को दर्शन, विश्लेषण दिखायी देता है।

>बोधिसत्व जी,
सौ बात की एक बात। ऐसी दूरदर्शिता पूर्ण सलाह... चलिये बहुत सावधानी बरती जायगी मठ आरंभ और संचालन करने में।

>संजीत भाई,
नाहक ही परेशान हो भाई! सभी बराबर हैं यहाँ। सभी चेले, सभी गुरु। हम सभी शाश्वत शिष्य हैं।

बेनामी ने कहा…

यह पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी.

संयोजित चित्र बहुत ही अच्छा आया है!
और idea बहुत बढ़िया लगा! :-)

साथ ही, blue moon का concept बताने के लिये भी शुक्रिया! :-)

Yunus Khan ने कहा…

दिल खुश हो गया चांद देखकर ।
एक शेर ठेल रहा हूं--
इधर से चांद हम देखें उधर से चांद तुम देखो
नज़रों से नज़रें मिलें हमारी ईद हो जाए ।
आपने चांद दिखाकर हमारी ईद कर दी । आपके संभावित शिष्‍यों की लंबी क़तार में हम भी हैं बीच में सकुचाए से खड़े हैं । ये तो बताएं कि कैमेरा कौन सा इस्‍तेमाल किया है । और क्‍या हम कुछ और तस्‍वीरों की प्रतीक्षा कर सकते हैं ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

राजीव जी,
आपका चित्र "सेव"/ SAVE / कर लिया है -
बहुत ही बढिया है--
-- लावण्या

Rajeev (राजीव) ने कहा…

>दुर्गा जी, लावण्य़ा जी,
आपको यह चित्र अच्छा लगा तो शायद मेरा प्रयास सार्थक है। लावण्या आपने "सेव" भी कर लिया है तो मुझे कोई आपत्ति नहीँ, वरन आपके प्रति आभार।


>यूनुस भाई,
यहाँ इस शेर वाली कोई बात नहीँ थी जनाब! कैमरा था Canon EOS 350D और लेंस प्रयोग हुये थे - दृष्यावली में Canon Lens @ 55mm और चाँद के लिये Sigma Zoom @ 263 mm. इंशा अल्लाह, ज़रूर कोशिश होगी अन्य चित्रों को भी यहाँ दिखाने की।

अजित वडनेरकर ने कहा…

शुक्रिया राजीव भाई, क्या किसी से कुछ शेयर करना सबको खुद से दूर करना है ? मैं बहुत मामूली आदमी हूं राजीवभाई और अपने शौक को सबके साथ बांट रहा हूं । आपने अभी तक मुझ से संवाद न बनाकर तो मेरे साथ अन्याय ही किया है:)
आपका ईमेल एड्रेस अगर दे सके तो बेहतर होगा। वर्ना कहां कहां जवाब देने मारे मारे फिरेंगे। हम ज्यादा टिप्पणियां कर नहीं पाते और फुर्सत में ही आप जैसे मित्रों के चिट्ठे देख पाते हैं। अलबत्ता चिट्ठियों का जवाब फौरन देना चाहते है।
ज्ञान दा की तरह हम भी आपके गंड़ाबंध शागिर्द बनना चाहते हैं। आपके हुनर को दाद देनी होगी।

Udan Tashtari ने कहा…

देर से आयें हैं ,मगर अब ज्ञान जी के संग गंडा बंधवा कर ही जायेंगे. :)

बेहतरीन!!!!

ghughutibasuti ने कहा…

फोटो बहुत अच्छी लगी । यदि यह पोस्ट कुछ वर्ष पहले पढ़ी होती तो मैं भी सीखने वालों की पंक्ति में होती ।
मेरी कविता पर आपकी टिप्पणी बहुत सही है । बहुत दिन के बाद आपकी टिप्पणी नजर आई । धन्यवाद ।
घुघूती बासूती

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi ने कहा…

राजीव जी,
क्या मस्त छवियां हैं सब के सब.

अभी शरद पूर्णिमा पर सुबीर जी के ब्लोग पर चान्द के बारे जो कह आया था ,फिर प्रस्तुत है:

आगे आगे चांदनी पीछे पीछे चांद्
सीधे आंगन तक घुसे सभी छतों को फांद

हाथ उठाकर रेंग कर बच्चा करता मांग
फुदके फुदके चांदनी ,हाथ ना आवे चांद्


अति सुन्दर फोटोग्रफी .

सिर्फ एक प्रश्न, पहले फोटो में आपने एक्स्पोजर 137 सेकंड बताया है, कुछ गलती तो नही है ?

अजित वडनेरकर ने कहा…

इतना लंबा अतराल ! कुछ तो अंतरिम राहत दीजिए राजीव भाई?

बेनामी ने कहा…

आप की फोटोग्राफी सचमुच सराहनीय है जनाब....

गुलज़ार साहब का शेर याद आ गया

किसने रस्ते मे चाँद रक्खा था
मुझको ठोकर वहां लगी कैसे