कॉफ़ी-कप में तूफ़ान - मोहल्ले के कॉफ़ी-हाउस से स्टारबक्स तक
आजकल तूफानों और झटकों का दौर है। अभी कुछ ही दिन पहले हमारे मोहल्ले में बहुत बहस-मुबाहिसा हुआ। अपनी बात कहने के सभी हथकंडे अपनाये गये। इधर से पोस्ट... उधर से टिप्पणी वगैरह..। जैसी उम्मीद थी, वैसे ही हुआ। खूब वाद-विवाद दृष्टांत आदि हुए। अंतत: एक सद्भावना भरे पत्र के बाद मुआमला कुछ ठंडा पड़ने लगा।
यह अभी खत्म हुआ नहीं था कि चिट्ठा-जगत में एक कॉफ़ी-हाउस खुल गया जहां हर कोई आ जा सकता था। लोग-बाग खुश हुए, तालियाँ भी बजायीँ कि अब तो यहाँ काफी की चुस्कियों का आनन्द भी मिलेगा। कॉफ़ी-हाउस तो खुलते ही कॉफी का वास्तविक (कड़वा) स्वाद दिलाने लगा। जब लोगों ने कहा कि कॉफी कड़वी है तब उन्हें दूसरे बाज़ार वालों का भी समर्थन मिलने लगा। वे भी कहने लगे - नहीँ-नहीँ कॉफी बिलकुल ठीक है और कुछ एक आभासी दावे भी पेश कर दिये। कॉफ़ी-हाउस वालों की हौसलाआफ़ज़ाई हो गयी। अपनी पुरानी बात अगले दिन पुन: प्रस्तुत कर दी - इस बार अपने ग्राहकों की शिकायतों और बाज़ार-वालों के समर्थन के साथ। एक ही बात कई बार और कई स्थानों पर सुनायी देने लगी।
जब चिट्ठों और ब्लॉगरों से ध्यान हटा तो देखा कि अंतर्राष्ट्रीय कॉफ़ी-हाउस में भी हल्ला-गुल्ला हो रहा है। एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी वॉल-मार्ट और मित्तल जी का गठबंधन पहले ही समाजवादी जनता को भयभीत किए हुए था, एक और भी आने को तैयार है। अब हमारे यहाँ काफी पीने वालों की कोई कमी तो है नहीँ। हम तो बहुत पहले से एक बहुराष्ट्रीय ब्राण्ड की काफी पीते आ रहे हैं। कॉफी की एक और बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने भारत की ओर रुख किया, नाम तो बहुत से लोग जानते हैं - स्टारबक्स।
हमारे देश की मशहूर सौन्दर्य प्रसाधन विशेषज्ञा शाहनाज़ जी, जो कि स्वयं में ही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं और आयुर्वेदिक सौन्दर्य-प्रसाधनों से संबद्ध एक प्रसिद्ध व्यवसाय भी चलाती हैं। जब उन्होंने अपनी रिटेल-श्रृंखला की बात चलाई तो उसका नामकरण स्टारस्ट्रक्स रख डाला। यह नाम उपरोक्त विदेशी कम्पनी के नाम से कुछ मिलता जुलता था तो उस विदेशी कम्पनी के कॉफी हाऊस वालों को भी काफी की कड़वाहट महसूस होने लगी और भारतीय सरकार के दरबार में अपनी दु:ख भरी शिकायत पेश करी। हमारी सौन्दर्य प्रसाधन विशेषज्ञा ने भी कहा - आखिर बहुतेरे मिलते जुलते नाम होते हैं, करने दो उन्हें विरोध, हम भी मुकाबिला करेंगे।
इस विषय की अधिक जानकारी संजाल पर
http://news.yahoo.com/s/nm/20070305/od_nm/starbucks_starstrucks_dc
http://starbucksgossip.typepad.com/_/2007/03/starbucks_doesn.html
आजकल कॉफ़ी कुछ ज्यादा ही कड़वी हो चली है, चाहे वह मोहल्ले के बज़ार की हो, अपने कॉफी हाउस की, या फिर हो स्टारबक्स की।
चलते-चलते
एक वास्तविक भूकंप हमारे लोकप्रिय चिट्ठाकार को भी अनुभूत हुआ। सर्वशक्तिमान की कृपा से वे न केवल सुरक्षित रहे, वरन् अन्य पाठकों को इसका विवरण भी तुरंत दे डाला।
*लेख में प्रयुक्त ब्राण्डों के नाम उनकी कम्पनियों द्वारा पंजीकृत हैं
4 टिप्पणियां:
बहुत सही कहे हो राजीव भाई, आज की चिट्ठा चर्चा पढ़ो..इसी पर है!! :)
विवादों से लगता है आप भी बहुत घबराते हैं। शायद आप इतना डर गये कि अपने ही विचारों को इस लेख में पूरी तरह सेन्सर कर दिया।
खैर प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। साधुवाद।
समीर भाई, धन्यवाद। हाँ मैंने भी वह चर्चा देखी है।
अनुनाद जी, विवादों से कुछ तो दूर ही रहता हूं, सक्रिय योगदान तो उसे बढ़ायेगा ही। इस लेख में लेकिन ऐसा नहीँ है। कोई सेंसर नहीं किया है अपने विचारों का। बिलकुल सीधी तरह लिख दिया - बस कम शब्दों में, यह मानते हुए कि पाठक तो समझदार हैं ही, स्वयं ही विचार करेंगे और कुछ सहज रूप भी रह जायगा - विचारों को उनके मूल रूप में अव्यवस्थित सा रखने का।
बड़ा महीन काटा आपने तो। काफी वाले लोग न जाने क्यों अपनी पिछली टिप्पणियों को सजा के रखे हैं!
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