सोमवार, 5 मार्च 2007

कानपुर की अनोखी होली - स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास से

कानपुर की अनोखी होली
हमारे यहाँ भी अजीब चलन है| जब दुनिया भर होली खेल कर वापस अपने अपने कामों मे लग गयी होगी तब भी हमारे यहां होली की ही मौज बनी रहेगी। हम तो होली का त्योहार अपने ही समय से मनायेंगे। इस बात पर पहले कभी जीतू जी ने भी अपने चिट्ठे पर प्रकाश डाला था।

कानपुर शहर में होली की एक विशेष परम्परा हो गयी है। यहाँ होली का त्योहार लगभग 4-7 दिन तक चलता है। किसी वर्ष 3-4 दिन ही और कभी-कभी 7 दिन तक - यह निर्भर करता है नक्षत्रों की स्थिति पर। सामान्य रूप से जिस दिन देश भर में होली होती है, यहाँ पर भी उसी दिन मनायी जाती है पर उससे भी कहीं अधिक यह अंतिम दिन मनायी जाती है। इस दिन संध्या काल में गंगा के किनारे मेला भी लगता है। इस दौरान सभी दिनों शहर के थोक व्यापार लगभग बन्द ही रहते हैं और आखिरी दिन अर्थात् मेले वाले दिन होली की उमंग और रंग, दोनों ही सबसे अधिक होते हैं और इस दिन तो न केवल थोक वरन् फुटकर बाज़ार और स्थानीय कार्यालय भी बन्द रहते हैं।

यह क्यों और कब से होता आ रहा है? यह कोई बहुत पुरानी या कोई धर्मिक परम्परा नहीं है, कोई मान्यता भी नहीं। इस प्रकार होली मनाने का चलन कानपुर में अंग्रेज़ी हुकूमत के ज़माने से प्रारम्भ हुआ था और इसकी पृष्ठभूमि में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों की और उन पर ब्रिटिश सरकार के ज़ुल्म की दास्तान है।
स्वतंत्रता सेनानियों के इतिहास से
कानपुर के पुराने शहर के मध्य में स्थित हैं कुछ मोहल्ले - जिनमें प्रमुख हैं - मनीराम बगिया, हटिया, फीलखाना आदि। ब्रिटिश हुकूमत के समय इन मुहल्लों में शहर के प्रमुख क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी रहा करते थे और अन्य शहरों व प्रदेशों के अन्य क्रांतिकारी भी यहां आते-जाते रहते थे। इनमें से प्रमुख नाम जो याद आ रहे हैं उनमें चन्द्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष बोस आदि भी थे। वे अपनी सार्वजनिक सभायें भी यहां करते और विभिन्न प्रकार की योजनाओं पर विचार भी। यहाँ के हटिया क्षेत्र में एक सार्वजनिक पार्क ऐसी कई सभाओं का साक्षी रहा है।

उन्हीं दिनों एक बार होली के ठीक पहले ऐसी ही एक सभा यहाँ के हटिया पार्क में चल रही थी। कई स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी उस सभा में शामिल थे। ब्रिटिश हुकूमत इनके कारनामों से त्रस्त हो चुकी थी और इनको गिरफ्तार करने की फिराक में थी। इस अवसर का लाभ उठाते हुए अंग्रेज़ी पुलिस के अफसरों ने उस पार्क पर धावा बोल दिया और वहाँ मौजूद क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर उनको जेल में बन्द कर दिया। सरकार का विरोध करने के आरोप लगाये गये उनपर।

स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तारी का समाचार जंगल की आग की तरह शहर भर में फैल गया। होली के पर्व पर विदेशी हुकूमत की ऐसी धांधागर्दी का विरोध करना तय किया गया। व्यापारी और आम-नागरिक सभी ने आम सहमति बनायी और विरोध प्रकट करने के लिये होली जैसे महत्वपूर्ण पर्व का बहिष्कार करना निश्चित हुआ। नागरिकों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया कि जब तक अंग्रेज़ी सरकार हमारे क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को रिहा नहीँ करती, कोई शहरवासी होली नहीँ मनायेगा और इस प्रकार नियत तिथि को होली नहीँ मनायी गयी

पहले ब्रिटिश सरकार ने समझा होगा कि यह मात्र एक ही दिन का विरोध है परंतु जब होली पर भी हमारे क्रांतिकारियों को मुक्त नहीँ किया गया तब होली के बाद भी शहर के प्रमुख बाज़ार बंद रखे गये। अंतत: कुछ दिन बाद सरकार को जनता के विरोध के आगे घुटने टेक देने पड़े और उन बंदी क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों को रिहा कर दिया गया।

फिर क्या था, शहर के नागरिकों में उल्लास था, खुशी थी अपनी विजय की और क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों के मुक्त होने की। तब होली का त्योहार पहले की अपेक्षा अधिक जोश और उमंग से मनाया गया। भंग की तरंग और होली के रंगों के साथ। जेल के ही पास गंगा के पावन तट पर बने सरसैया घाट पर वृहद मेले का आयोजन किया गया। नक्षत्र गणना के अनुसार उस दिन अनुराधा नक्षत्र था अत: वह एक मानक दिवस बन गया। कानपुर में उस वर्ष के बाद प्रतिवर्ष होली को उस विजय रूपी पर्व और क्रांतिकारियों की मुक्ति की वर्षगाँठ के रूप में मनाया जाने लगा।

वर्तमान परिदृश्य
अंग्रेज़ तो कब के चले गये हैं पर हम शहरवासी स्वतंत्रता के पुजारियों की उस विजय-स्मृति में होली के बाद अनुराधा नक्षत्र वाले दिन भरपूर होली खेल कर और सरसैया घाट पर गंगा मेले के रूप में मनाते हैं। कभी तो यह होता है होली के 3-4 दिन बाद ही और कभी 5-7 दिन बाद।

वर्तमान काल में इसका रूप कुछ और भी बदल गया है। तेज़ी से बदलते सामाजिक परिवेश में अब उन स्वतंत्रता सेनानियों की घटना को तो बहुतों ने जाना ही नहीँ और इसकी विशेष आवश्यकता भी अनुभव नहीँ करी जाती। शहर की मुख्य मंडियाँ व थोक बाज़ार अब भी 3-6 दिन आंशिक या पूर्ण रूप से बंद रहते हैं। श्रमिक और कर्मचारी भी इन दिनों लगभग अनुपस्थित ही रहते हैं। अब तो बहुत से उद्योगपति और व्यापारी इस अवसर को अलग रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि वर्ष भर इस प्रकार लगतार 3-6 दिन की छुट्टी तो कभी और सम्भव नहीँ होती तो वे इस अवसर का लाभ उठाते हुए मित्रों अथवा परिवार सहित किसी तीर्थस्थान अथवा पर्यटन स्थल पर भ्रमण कर सप्ताह भर छुट्टी मनाते हैं। उधर गंगा मेले को जन-सम्पर्क का अच्छा अवसर मान जन प्रतिनिधि भी जन-सामान्य के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज़ करना नहीँ भूलते और अपनी लोकप्रियता का दायरा बढ़ाने का भरसक प्रयास करते हैं।

तो चलते हैं हम अभी तो। गंगा मेला तो इस वर्ष (2007) में 10 मार्च को निश्चित हुआ है। तब होगी कानपुर की असली होली। आज होली के दिन यदि कोई होली मनाने से वंचित रह गया हो तो अभी मौका नही गया है। कानपुर आपकी प्रतीक्षा करेगा गंगा मेले तक।

अभी तो हम अपने एक मित्र के घर होली की काव्य-गोष्ठी का आनन्द ले कर आ रहे हैं। फुरसतिया उर्फ अनूप जी भी साथ में थे । कभी इसका जिक्र बाद में...

7 टिप्‍पणियां:

Divine India ने कहा…

ऐतिहासिक परिदृश्य व वर्तमान संदर्भ का अच्छा समायोजन किया है…पर्व का महत्व ही खुशी से है और अगर लोग कुछ क्षण अपने महात्वाकांक्षा को छोड़ इसे ज्यादा आनंद स्वरूप मनाते है तो यह भी
अन्नय रुपों में ठीक ही है…
शब्दों का बढ़िया संगम। बधाई!!

अतुल श्रीवास्तव ने कहा…

धन्यवाद इतनी अमूल्य और रोचक जानकारी के लिये. बहुत अच्छा लगता है इस तरह की ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में पढ़ कर. ऐसी ही चीज़ें लिखते रहिये कानपुर और उसके आस पास के इलाकों के बारे में.

बेनामी ने कहा…

राजीव जी, कानपुर की होली के बारे में बताने के लिये धन्यवाद।

वो होली गंगा किनारे वाली।।।

देखो राजीव जाये, अनुप को भी ले जाये।
मिलने छोरी से, ओ मिलने छोरी से
चुपके से जायें..SSSSS
ये छोरे कानपुर में रहने वाले
ओ होली गंगा किनारे पे मनायें

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छा लगा यह रोचक जानकारी पढ़कर.

आपका साधुवाद और होली ली मुबारकबाद!!


--काव्य गोष्ठी वाली विस्तृत पोस्ट का इंतजार है!

अनूप शुक्ल ने कहा…

राजीवजी, अब कल के टेप मंगवाये जायें तब कुछ लिखा जाये। वैसे अब लगता है हम लोगों को कानपुर के बारे में सारी उपलब्ध जानकारी नेट पर डाली जाये।

अनूप शुक्ल ने कहा…

राजीवजी, अब कल के टेप मंगवाये जायें तब कुछ लिखा जाये। वैसे अब लगता है हम लोगों को कानपुर के बारे में सारी उपलब्ध जानकारी नेट पर डाली जाये।

Rajeev (राजीव) ने कहा…

divine india, अतुल जी,
तरुण जी,
समीर जी
आपको अच्छा लगा, यह जानकर प्रसन्नता हुई।

तरुण जी, आपकी कविता तो ठीक है, परंतु उसकी दो पंक्तियाँ सत्य नहीँ हैं। यदि सत्य ही होतीँ तो क्या कहने...

समीर जी,
विस्तृत पोस्ट के लिये तो विशेषज्ञ अनूप जी ही ठीक रहेंगे।

अनूप जी,
अब 2-4 दिन में पुन: भेंट होगी तब उनसे बात की जायेगी
। शायद कार्यक्रम के बाद ही।